Thursday, September 17, 2015

बस और चाहिए ही क्या ………

(With God's grace, I was blessed with a son last week. This is a note for him, and for myself too so that the memories, melodrama, serious thoughts and the gratitude that I have for everyone around is not lost over the time with moments of fun and happiness that is going to follow with his arrival and over the years. The article has some personal, melodramatic detailing and I have deliberately avoided humor, wrote in crude Hindi, which might remind you of some 1960's black and white Bollywood movie. But, that's the way I wanted to keep it. )

प्रिय दर्श,

आज जब तुम इसे पढ़ पा रहे हो, इसका मतलब है की तुम सात आठ वर्ष के तो हो ही गए हो
यह मैंने तब लिखा था जब तुम पूरे सात दिन के हो गए थे.…   तुम्हारा नाम भी निश्चित नहीं हुआ था… छोटू/छुटकू आदि नाम से बुलाते थे तुम्हे। मेरी एक हथेली में ही पूरे समा जाते थे तुम. हम सब के लिए इतनी सारी खुशियाँ लेके आये थे तुम.
२०१५ के अगस्त महीने की वो आखरी रात थी.… ३१ तारीख बस लगी ही थी। .... रात के करीब एक बजे थे। ....  बाहर हल्की  हल्की बारिश हो रही थी।जब पहली बार तुमने इस दुनिया में आने  दस्तक दी थी। … 

हम, तुम्हारे चाचा और अम्माजी (तुम्हारी दादीजी) ने स्वाति को साथ में लिया और थोड़ी ही देर मे हॉस्पिटल जा पहुचे. शुरू मे हमे लगा की बस ऐसे ही थोड़ी तकलीफ़ होगीदर्द ही तो हैथोड़ी देर मे शांत हो जाएगा. नर्स ने तोड़ा ऑब्जरवेशन किया और स्वाति को, हम सब को एक रूम मे आराम करने भेज दिया. लगा जैसे अभी कुछ नही हुआ है, काफ़ी समय है. या शायद कुछ भी नही है. लेकिन धीरे धीरे कुछ ही समय मे तुम्हारे आने की आहट बढ़ती चली गयी. स्वाति को लेबर रूम मे ट्रान्स्फर कर दिया गयाअकेले. हमे बाहर ही रोक दिया गया. उस असह्नीय दर्द से तुम्हे जन्म देने तक का सफ़र उसे अकेले ही तय करना था. ये विडंबना ही है कि ज़िंदगी के सबसे नाज़ुक पलों मे नर नारी के साथ नही रह पाता है. शायद इसलिए भी की अपनो को देख कई बार इंसान की दर्द सहने की क्षमता कम हो जाती है. प्रियजनों के स्पर्श की चाह मे वो भावना मे बह बिलख पड़ता है और सहन शक्ति जाती रहती है
.
 अम्माजी जन्म का समय नोट करने के लिए घड़ी पर ध्यान रख रही थी  

अब तक सुबह के साढ़े चार भी बज गये थे.. शायद बादलो की वजह से बाहर अब भी घुप अंधेरा था.. भूसा बारिश का दौर जारी था. “भूसा बारिश” जानते हो? भूसा बारिश मतलब गावों मे धान का भूसा (meaning 'chaff') जैसे उड़ता है वैसी बारिश. हम रूम के बाहर दरवाज़े पर टकटकी लगाए बैठे थे.. .  Labour रूम छोड़ बाकी हॉस्पिटल मे सन्नाटा ही था. बाहर घुप अंधेरा था…


कुछ देर पहले, चीफ डॉक्टर: मेडम डॉक्टर शुक्ला रूम मे जा चुकी थी. अंदर की गतिविधियो का हम दोनो अंदाज़ा तो लगा रहे थे लेकिन निश्चित कुछ समझ नही पा रहे थे.. हाँ लेकिन इतना समझ आ ही गया था की अब कुछ होने वाला है. रूम मे नर्सों का आना जाना बढ़ गया था. सर्जिकल इन्स्ट्रुमेंट्स इत्यादि लेजाते एक नर्स भी दिखी थी. ना रहा गया तो एक नर्स को रोक कर पूछ ही लिया Madam, क्या डेलिवरी होने ही वाली है?” नर्स ने हाँ मे उत्तर दिया.


बस!! ………………

समय रुक गया था मेरे लिए. ठंड नही थी ज़्यादा, पर एक सिरहन तो दौड़ ही गयी थी तन मे. मानो अंदर रूम में क्रिकेट मैच चल रहा है और मेरी बीवी आखरी बॉल पर छक्का मारने ही वाली है!!अम्माजी और ऋत्विक की आखों मे भी वही दिख रहा था मुझे जो शायद मेरी आखों मे भी था: ईश्वर से प्रार्थनाभाव !! तुम्हारे लिए नही. सबको पहले स्वाति की फ़िक्र थी. तुम सेकेंड priority थे. 


इस सब के बीच अम्माजी पूरे धैर्य के साथ, मज़बूत खड़ी थी! ये वो ही थी जिनके कारण अब तक सब इतनी आसानी से संभव हो पाया था. कन्सीव करने लेकर डेलिवरी तक स्वाति के लिए छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बात का उन्होने इतनी खूबसूरती से ख़याल रखा था की यह नौ महीनो का कठिन सफ़र स्वाति को आसान सा लगा! इस सफ़र में कई दफ़ा हम कई असमंजस से गुज़रे. जब दो राहो मे से एक को चुन पाना असंभव सा लगता था, तब वो अम्माजी का विवेक, अनुभव और निर्णय लेने की क्षमता ही थी जिसने हमें सब सही निर्णय लेने मे मदद कर दी…. और हम आज यहाँ आ पहुचे, इस सफ़र की अंतिम दहलीज़ पर…. वो अंतिम दहलीज़ जो स्वाति को अकेले चढ़ना था….

… और वो चढ़ भी गयी…. "Yes! Its a Six on the last ball!! The batswoman Swati Patel just came out of the crease and hit the ball off cover beyond the boundary to a MAXIMUM!!"अचानक अंदर से एक नन्न्हे के रोने की आवाज़ आई.. .. ठीक वैसे ही जैसे पिक्चरों मे दिखाते हैं. अम्माजी, ऋत्विक अचानक थोड़े ठिठके, और चारो आँखों मे चमक सॉफ थी.

अम्माज़ी: “हो गया लगता है”

मैं: “कैसे पता?”

अम्माज़ी: “रोने की आवाज़ आई ना”

मैं: “वो तो आई लेकिन कैसे पता की हो “गया”. आपको कैसे पता की लड़का है”

अम्माज़ी: “लड़के की रोने की आवाज़ है”



ऋत्विक शांत थे. शांत वो हमेशा ही रहते हैं लेकिन ये शांति कुछ और थी. वो शायद अपनी भाभी की कुशलता के बारे मे सोच रहे थे. वैसे हम तीनो ही शांत थे, किसी ने खुशी ज़ाहिर नही की थी. शायद सभी को डॉक्टर का इंतज़ार था.

तुम्हारी रोने की आवाज़ अब बंद हो गयी थी. अंदर अभी भी गहमा गहमी हो रही थी. सिस्टर्स आ जा रही थी. लेकिन कोई हमारी तरफ देख नही रहा था.. शायद ऐसा वो लोग सोच समझकर कर रहे थे. ऐसा कुछ दस से पंद्रह मिनिट तक चला होगा.

… और फिर डॉक्टर रूम से बाहर आई.. या यूँ कहूँ की ‘अवतरित हुई’. ये सब वो पल हैं जब आप अपना सब कुछ किसी एक इंसान के हाथ मे सौंप देते हो. सब कुछ उसके हाथ में हो जाता है. जैसे बहुत बार आप अपना सब कुछ भगवान के हाथ छोड़ देते हो. आज ही समझा की डॉक्टर को भगवान का रूप क्यूँ कहा जाता है. ये सब कुछ डॉक्टर के पेशे को बाकी पेशों से बहुत बहुत आगे लेजा लेता हैं. No Steve, or Bill or Sunder can be a match to a Doctor's profession.और फिर…. आख़िर वो सुनहरे शब्द आए.

डॉक्टर ने कहा: “बहुत बहुत बधाई हो ममता. बेटा हुआ है. स्वाति भी ठीक है. आप अंदर जा सकते हैं” मैंने झुककर डाक्टर  चरणस्पर्श किये !
हम अंदर गये और तब, 31 अगस्त 2015 को सुबह 4:45 मिनिट पर हमने तुम्हे पहली बार देखा. जो हो रहा है वो स्वप्न नही है ये विश्वास करने मे कुछ वक़्त तो लगा. लॉजिक्स, मेथ्स, फिज़िक्स आदि अच्छा था. ऑफीस के साथ, समय मिलता था तो लॉजिकल रीज़निंग की कोचैंग भी पढ़ाते थे शौकिया. ऑफीस मे भी सारा कुच्छ लॉजिकल होता है. इस तर्क/लॉजिक 1+1=2 के चक्कर मे सारी दुनिया, सारे लोगो के पीछे, किसी के बात करने, सब कुछ के पीछे कुछ लॉजिक ही दिखने लगा था… बस आज लगा की चमत्कार भी कोई चीज़ होती है. तुम मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा चमत्कार थे. आँखें मीचे हुए, छोटी छोटी मुत्ठियाँ बंद, लालिमा भरा चेहरा तुम्हारा आग सा दमक रहा था. रो नही रहे थे तुम. ऐसा लग रहा था बड़े मज़े से आए हो दुनिया मे. नाक चपटी हुई सी थी अपनी परदादी की तरह. शरमाओ नही, बिल्कुल नंगू नंगू नही थे तुम. नर्स ने हमारे आने के पहले ही ड्रेस पहना दिया था तुम्हे. अम्माजी दे दी थी उन्हे पहले ही. दो बित्ते के भी नही थे तुम. दो बित्ता मतलब समझे ना? हमारे दोनो हथेलिया जोड़ो तो तुमसे बड़ी होती थी. इतने नाज़ुक थे की हममें तो हिम्मत नही थी की तुम्हे उठाए. अम्माजी ने सबसे पहले तुम्हे गोद मे लिया. शायद इतनी खुशी हम उन्हें इससे पहले कभी नही दे पाए थे. उनकी वो खुशी देखना जीवन सफल होने से कम ना था.


खैर… हमारा ध्यान तुम पर कम ही था.. हमने रूम मे घुसते ही सरसरी निगाहो से तुम्हे देखा… और फिर घूम गयी नज़रें स्वाति की तरफ… शायद घर मे आए नये मेहमान, जो की हमेशा के लिए इस परिवार का हिस्सा बन जाने वाला था.. से ज़्यादा फ़िक्र हमें उस मेहमान को ले के आने वाले सदस्य की थी. भट्टी मे तप कर बाहर निकलने वाले सोने की तरह बीवी का चेहरा भी और भी दमक रहा था. स्त्री जीवन के संभवतः सबसे महान युद्ध मे वो परम विजयी हो कर निकली थी… वो युद्ध जिसे जीत नारी, नर से कोसो आगे निकल जाती है. है कोई हरक्यूलस, एलेग्जेंडर, अशोका या जॉन स्नो जिसने नौ महीने किसी को अपने तन का हिस्सा बना कर पाला हो.


हम स्वाति के साथ बैठे रहे, जब आपके चाचा डॉक्टर साहब और अम्माजी आपके स्वागत सत्कार, देख भाल मे लग गये…. तभी आगमन हुआ “मैन ऑफ दी हाउस” आपके दादाजी का. चेहरे पर एक चौड़ी सी मुस्कान पहने आए थे वो. तुम्हारे पास आकर रुक गये और बिना कुछ कहे बस एक टक देखते रहे. हर पल शब्दो का खजाना उड़ाता फिरता यह सौदागर अचानक शब्द-हीन हो गया था. चाहत ज़रूर उनकी पोते की नही, पोती की थी… पर तुम्हारी सुंदर मासूमियत भरी आँखें जो एक टक उनकी ओर देख रही थी, वो भाव विभोर हो पुतला बन गये थे… बड़े होकर, उनसे सीख कर, अगर तुम मात्र दस प्रतिशत भी उनकी तरह बन सके तो सबसे खुशकिस्मत इंसान होगे. तुम्हे मिनटों तक निहारने के बाद वो स्वाति के पास उसका कुशल क्षेम पूछने पहुचे. उनकी आँखें अब भी हल्के गीलेपन से चमक रही थी. अपनी सिग्नेचर मुस्कान लिए वो थोड़ा ज़ोर देकर बोले: “सुंदर है”. 

अम्माजी की सुंदरता के कारण उनके सुंदरता के पैमाने बहुत ऊँचे हैं. कम ही लोग होंगे जिन्हे उन्होने सुंदर माना है. तुम्हारा उनमे से एक होना, लाइफ का तुम्हारा पहला सर्टिफिकेट था. अगले दो दिन तुम शुक्ला नर्सिंग होमे के रूम नंबर. 9 मे रहे और फिर तुमसे पहली बार मिलने आने वालो का ताँता लग गया …..
Shukla Nursing Home में हमारे रूम का garden. 


दो दिन बाद सेप्टेंबर 02, 2015 को दोपहर करीब 12 बजे हम तुम्हे अपनी पुरानी मारुति 800 मे बिठा घर ले आए, जहाँ तुम्हारी दादी ने तुम्हारा स्वागत किसी राजकुमार की तरह, आरती उतार, पूजा कर के किया….

और तब से शुरू हुआ तुम्हारा सीखने, खेलने और खुशियाँ फैलाने का चक्र. ऋत्विक चाचा तो तुम्हे चिपका के ही रखते थे पूरे समय. ना तो GSITS, ना ही IIT Selection ने पटेल फॅमिली को इतनी खुशी दी होगी जितना तुम्हारे आने से हुई. हम सब के मुस्कराने का कारण बन गये तुम, उस दिन से अब तक और आगे भी 


मालिश वाली।  सेंसर कर दिए हैं :D  
इस पूरी अवधि मे ढेर सारे लोगो ने प्रत्यक्ष और कुछ ने अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सहायता की. बंगलोर मे ड्र. लेवीन/मदरहुड की डॉक्टर शेफाली त्यागी बंगलोर की सबसे बेहतरीन डॉक्टर क्यूँ है ये हमने जाना. बाद मे बालाघाट मे डॉक्टर शुक्ला और शुक्ला नर्सिंग होमे का पूरा स्टाफ इतना ज़्यादा सपोर्टिंग होगा हमने नही सोचा था. तुम्हारी नानी ने भी अपने घर से दूर बैंगलोर में और यहाँ बालाघाट मे रहकर कई दिनों तक तुम्हारा ख्याल रखा. हमारी अनिता मासी तुम्हारे लिए ढेर सारे छोटे छोटे कपड़े बनाकर, कुछ ख़रीदकर पहले से ही तैयार रखी थी.. 

दिवाली में और भी मस्ती होगी …  जब पूरा पटेल परिवार साथ होगा। जिसने भी कहा है सच ही कहा है: "असली मज़ा तो सबके साथ ही आता है "

चालो....... Signing off... I know की थोड़ा भरी ज्ञान हो  गया है. Lets switch to TV now, have some fun. … Comedy nights with Kapil तो बंद हो गया.… Is any news channel showing Rahul Baba's speech?  
नानी

छटी में तुम्हारे बाल दिए 

अम्माजी






दादाजी की ख़ुशी देखो
















ऋत्विक जब तुम्हारे नाख़ून काटते थे।